जय श्रीराधेकृष्ण-

जय श्री राधे कृष्ण*……………..

कहते हैं कि ब्रज के कण कण में श्री राधा रानी और श्रीकृष्ण का निवास है। श्री राधा कृष्ण अपने भक्तों पर सदैव कृपा बरसाते है पढ़ें राधा रानी के ऐसे भक्त की कथा।

एक बार बरसाना और उसे आसपास के इलाकों में भीष्म अकाल पड़ा। वहां रहने वाले लोगों और साधू संतों को भोजन की बहुत दिक्कत आने लगी। अकाल के कारण चारों ओर हाहाकार मच गया।

अकाल के कारण लोगों को उन गांवों से पलायन करना पड़ा। बरसाना में एक संत जी रहते थे। उन्हें भिक्षा में जो मिलता उसे पहले राधा रानी को भोग लगाकर फिर स्वयं भोजन ग्रहण करते थे। अकाल के कारण भिक्षा मिलना भी बंद हो गई और उनकी कोठरी में पड़ा सामना भी समाप्त हो गया।

परिस्थितियों से विवश होकर उन्होंने बरसाना गांव छोड़ने का मन बना लिया। नैत्रों से अश्रु बहाते हुए और राधा रानी से क्षमा की याजना कर कहने लगे कि,”श्री जी मुझे क्षमा करना मुझे परिस्थितियों के वश यह गांव छोड़ कर जाना पड़ रहा है।”

उनकी करूण पुकार सुनकर एक सुंदर सी ब्रज कन्या वहां आई और पूछने लगी कि बाबा कहां जा रहे हो? संत ने उदास स्वर में कहा कि,” यहां पर अकाल के कारण भिक्षा नहीं प्राप्त हो रही इसलिए इस पेट की भूख शांत करने के लिए यहां से पलायन करने का मन बना लिया है।”

ब्रज कन्या कहने लगी कि,” बाबा आप मेरे घर भिक्षा लेने आना, मेरी मैया हर रोज भिक्षा देने के लिए भोजन निकालती है। संत कहने लगे कि,” पुत्री मैं नहीं जानता कि तुम्हारा घर कहां है?”

ब्रज कन्या बोली कि,” बाबा मैं वैद्य श्रीधर की पुत्री राधा हूं। आप वहां जाकर कहना कि जो आले में भोजन पड़ा है वह मुझे भिक्षा में दे दो।”

संत जी ब्रज कन्या के बताएं पत्ते पर वैद्य जी के घर पहुंच कर भिक्षा के लिए आवाज लगाई। वैद्य जी बाहर आएं और कहने लगे कि,” बाबा आज तो हमने भिक्षा नहीं निकाली।” संत ने उन्हें बताया कि मुझे आपकी पुत्री राधा ने भेजा है। उसने कहा था कि,” मां ने आले में भोजन रखा है।”

वैद्य जी ने आश्चर्य से संत जी को बताया कि मेरी पुत्री राधा की मृत्यु तो कई साल पहले हो गई थी। वैद्य जी ने संत के कहने पर आले में देखा तो वहां पर भांति भांति के भोजन रखें थे। वैद्य जी की पत्नी कहने लगी कि,”मैंने तो कभी भी यहां पर भोजन नहीं रखा।”

वैद्य जी जान गए कि यह श्री राधा रानी की कृपा है। वैद्य जी ने बड़े चाव और प्रेम से संत जी को भोजन करवाया। वैद्य जी कहने लगे कि,” बाबा आप प्रतिदिन यहां से भोजन लें जाना।”

राधा रानी की कृपा से संत जी के प्रतिदिन के खाने का इंतजाम हो गया। तभी तो कहते हैं कि बड़ी करूणामयी है राधा रानी वह अपने भक्तों संतों का सदैव ख्याल रखती है।

जय श्रीराधेकृष्ण।

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