गाय बछड़े का भाग्य–

एक दिन बाल कृष्ण एक वृक्ष के नीचे बैठे बांसुरी बजा रहे थे,

तभी उनकी नजर यमुना किनारे खड़े एक छोटे से बछड़े पर पड़ी, बछड़ा पानी नहीं पी रहा था,
भगवान् झट उसके पास गए और उसके सिर पर हाथ फेरते हुए बोले, क्यों रे पानी क्यों नहीं पीता ?
बछड़ा वैसे ही खड़ा रहा, इतने में दाऊ जी आ गए पूछने लगे.. बालकृष्ण बोले, देखो दाऊ! ये बछड़ा पानी नहीं पीता.
दाऊ बोले, कान्हा ! तुम अपने पीताम्बर में पानी लेकर आओ, हम इसे यही पानी पिला देते है.
बाल कृष्ण दौड़कर गए अपना पीताम्बर यमुना जी में गीला करके ले आये.
अब दाऊ जी पीताम्बर में से पानी निचोड़ने लगे और बाल कृष्ण हाथो का दौना बनाकर बछड़े के मुह पर लगा कर खड़े हो गए।
अब जिसे स्वयं कृष्ण इतने लाड़ से पानी पिलाये वह पानी कैसे नहीं पीता.
बछड़ा तुरंत पानी पीने लगा, जब बछड़े ने पानी पी लिया, तब बाल कृष्ण ने उसके बैठने के लिए धरती साफ़ की,
फिर जब वह बैठ गया तब उसके लिए हरि-हरि घास तोड़कर अपने हाथो से खिलाने लगे.
फिर जब वह तृप्त हो गया तब अपने पीताम्बर से उसे हवा करने लगे.
जब भगवान् बांसुरी बजाते तो बछड़े जो गाय का दूध पीते, उनके मुह का दूध मुह में ही रह जाता.
निष्तब्ध खड़े बांसुरी सुनते गायें अपनी सुध बुध भूल जाती.
गोपियाँ गायों और बछड़ों के भाग्य की सराहना करते नहीं थकती..
वे कहती ये गईया और बछड़े कितने भाग्यशाली है जो कृष्ण इनसे इतना प्रेम करते है.. ये तो सारे दिन वन में गायों के साथ ही रहते है. जब तक भगवान् की वासुरी गौए सुन नहीं लेती तब तक गौशाला से बाहर नहीं निकलती थी,
भगवान् भी एक एक गाय का नाम अपनी वासुरी में लेते, धौरी, श्यामा, नंदिनी, पदमगंधा, गाये अपने-अपने नाम जब वासुरी में सुनती तो दौड दौडकर कृष्ण के चारो और आकर खड़ी हो जाती,
और उन्हें अपनी जीभ से चाटकर अपना प्रेम व्यक्त करती, इस तरह भगवान श्री कृष्ण स्वयं सेवा करते थे।

🙏जय जय श्री राधे 🙏

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